फरीदाबाद, 17 नवम्बर: शिशु पोषण को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बाजार में फॉर्मूला मिल्क पाउडर की तेज़ी से बढ़ती ऑनलाइन बिक्री स्तनपान के महत्व को कमजोर कर रही है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अंकित चंद्र का कहना है कि आक्रामक डिजिटल मार्केटिंग माताओं में भ्रम पैदा कर रही है, जबकि स्तनपान ही नवजातों के लिए सबसे सुरक्षित और प्राकृतिक भोजन है।
आईएमएस एक्ट 1992 (संशोधित 2003), जो स्तनपान को बढ़ावा देने और फॉर्मूला मिल्क के प्रचार पर रोक लगाने के लिए बनाया गया था, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पूरी तरह प्रभावी साबित नहीं हो पा रहा। कई कंपनियाँ सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स साइटों पर आकर्षक ऑफ़र, वैज्ञानिक लगने वाले दावे और प्रचार अभियानों के जरिए नियमों को किनारे कर रही हैं।
हाल ही में इंडियन पीडियाट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में ऑनलाइन उपलब्ध 129 फॉर्मूला प्रोडक्ट्स की पहचान की गई, जिनमें प्रतिरक्षा बढ़ाने और दिमागी विकास में सुधार जैसे दावे किए गए, परंतु अधिकतर के पीछे ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले। औसतन 400 ग्राम पैक की कीमत करीब 790 रुपये पाई गई।
पिछले चार वर्षों में लिए गए नमूनों में लगभग 9% उत्पाद नियमों के अनुरूप नहीं मिले और दंडात्मक कार्रवाई बेहद सीमित रही, जिससे यह साफ होता है कि कानून का क्रियान्वयन अभी भी कमजोर है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह की मार्केटिंग माताओं में यह गलत धारणा फैलाती है कि उनका दूध पर्याप्त नहीं है, जिसके कारण कई महिलाएं अनावश्यक रूप से फॉर्मूला अपनाने लगती हैं।
फॉर्मूला पर निर्भरता न केवल आर्थिक बोझ बढ़ाती है, बल्कि संक्रमण का जोखिम भी बढ़ाती है और शिशुओं को स्तनपान से मिलने वाले प्राकृतिक पोषक तत्वों और रोग प्रतिरोधक सुरक्षा से वंचित कर देती है।
डॉ. चंद्र के मुताबिक, प्राथमिक लक्ष्य यह होना चाहिए कि हर शिशु को जीवन के शुरुआती महीनों में केवल स्तनपान ही दिया जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि डिजिटल प्रचार, भ्रामक दावों और बिना निगरानी वाली बिक्री पर कड़ी कार्रवाई की जरूरत है। साथ ही स्वास्थ्य कर्मियों, नई माताओं और शहरी परिवारों में आईएमएस एक्ट की जानकारी बढ़ाना आवश्यक है, ताकि शिशुओं के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जा सके।

